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Tuesday 22 May 2018

लिंग भैरवी

Linga Bhairavi
लिंग भैरवी और संभोग शक्ति एक दूसरे से आत्मिक रूप से जुडे हैं।  लिंगम् शक्ति के बिना संभोग संभव नही है। योनि, नारी शक्ति का ज्वालामुखी है जबकि लिंग, नर  ऊर्जा का प्रचंड वेग है। सम्भोग क्रिया के द्वारा ही ये दोनों ऊर्जा एक हो जाती हैं और सृष्टि में नया सृजन करते हैं। सृष्टि मे सम्भोग और सृजन निरन्तर चलता रहता है। सम्भोग परमानन्द का क्षणिक भाग है और इसे आनन्द कहते हैं। जब ये आनन्द अनन्त हो जाता है तो परमानन्द कहलाता है। स्वयं को इस परमानन्द में स्थापित करना ही मोक्ष है। जब कोई भी आत्मा परमानन्द में लीन होती है तो वो अन्तहीन आनन्द में डूब जाती है। वो सदैव सम्भोग में रत है। वो अनन्त सम्भोग में डुबी है। यही पुर्ण समाधि है। परमपुरुष प्रकृति के साथ सदैव सम्भोगरत है।

लिंग भैरवी लिंगम् शक्ति है। इस शक्ति के बिना सम्भोग का आनन्द प्राप्त नही किया जा सकता। नारी ऊर्जा, प्रेम और सम्भोग पर टिकी है। सम्भोग प्रेम का उच्चतम बिन्दु है। जो नर,  नारी को प्रेम और सम्भोग मे संतुष्ट नही कर सकता, नारी उसका त्याग कर देती है। जो पुरूष, नारी को सम्भोग में पूर्ण संतुष्ट कर सकता है, नारी उसके वशीभूत हो जाती है। नारी को नर ऊर्जा लिंग से सम्भोग क्रिया के द्वारा प्राप्त होती है। नारी सदैव प्रेम की भूखी है। नारी को प्रेम से ही अपने आधीन किया जाता है।

लिंग भैरवी की उपासना से लिंगम् शक्ति बढती है। ये नर ऊर्जा को और ज्यादा बलवान बना देती है जिससे नर, नारी को रति क्रिया में संतुष्ट कर, खुद भी लम्बे समय तक सम्भोग आनन्द प्राप्त करता है। लेकिन एक बात सदैव ध्यान रखें कि नारी भोग की वस्तु नही है बल्कि जननी है। याद रखिये कि आप स्वयं भी नारी से ही पैदा हुए है। नारी सदैव आदरणीय है।  

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